शब्द अचानक इतने नकली क्यूँ लगने लग गए
भावनाएं बचकानी क्यूँ बन गयी
प्यार धुंधलाने क्यूँ लग गया
साहस डगमगाने क्यूँ लग क्या
खुद की philosophies में हसी क्यूँ आने लग गयी
हर सोच व्यर्थहीन क्यूँ हो गयी
राहें दिशाहीन क्यूँ हो गयी
क्या इसी को maturity कहते हैं
जब आँखें खुल जाये
और दिल अविश्वासी हो जाये
क्या इसी का नाम Adulthood है?
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