Saturday, January 8, 2011

वोह पतंग

आज शाम उस पतंग को हवा में लहराते हुए देखा
अपने में मदहोश, एक पगली लड़की के समा आसमान में उड़ रही थी
सारी मुसीबतों से परे, गुनगुनाती सी कितनी खुश दिख रही थी
ऐसा देख के दिल में एक टिस चुभी
लगा मुझे चिढ़ा रही है वोह
पर एकटक निगाह जब उसपे लगी रही
तोह सवाल उठा क्या वोह खुश थी या फिर मुस्कराहट का एक नकाब था
उसकी ज़िन्दगी की डोर तोह किसी और के हाथों में थी
जहाँ हवा उसे बहने को कहती वो वहीँ बहती जा रही थी
उसके पंख लगे नहीं लगाये गए थे
पलके झपकी और इस सोच से बहार आई
और देखा किसी और ने वोह डोर तोडी दी

तेज़ी से वोह पतंग आकर ज़मीन पर गिरी
उसकी मौत की तख्दईर भी कोई बेरहमी से तय कर के चला गया


3 comments:

  1. well at least she's flying...its her bad that the hand holding the thread was not worth trusting...if only she could have a hand so strong to protect her from other kites and steer her high in the sky and never let her down....if it was a mask, then she wouldn't have gone so high in the sky...only bcz she trusted and relied on the hand that she felt so free to fly high in the sky...

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  2. I like the flow...nice work..

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  3. Beautiful lines....nice poem...

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