आज शाम उस पतंग को हवा में लहराते हुए देखा
अपने में मदहोश, एक पगली लड़की के समा आसमान में उड़ रही थी
सारी मुसीबतों से परे, गुनगुनाती सी कितनी खुश दिख रही थी
ऐसा देख के दिल में एक टिस चुभी
लगा मुझे चिढ़ा रही है वोह
पर एकटक निगाह जब उसपे लगी रही
तोह सवाल उठा क्या वोह खुश थी या फिर मुस्कराहट का एक नकाब था
उसकी ज़िन्दगी की डोर तोह किसी और के हाथों में थी
जहाँ हवा उसे बहने को कहती वो वहीँ बहती जा रही थी
उसके पंख लगे नहीं लगाये गए थे
पलके झपकी और इस सोच से बहार आई
और देखा किसी और ने वोह डोर तोडी दी
तेज़ी से वोह पतंग आकर ज़मीन पर गिरी
उसकी मौत की तख्दईर भी कोई बेरहमी से तय कर के चला गया