रिक्शा पौन घंटे में तो पंहुचा ही देगा . जल्दी जल्दी बिल्डिंग से उतरी और देखा पास में ही एक रिक्शा खड़ा हुआ है। उसने रिक्शेवाले को कांदिवली बोला और रिक्शावाले ने इस तरह से हामी भरी जैसे उसे पता हो की मैडम को कहाँ जाना है। उसे इस बात पर थोडा अचरज हुआ पर इतना सोचने का टाइम नहीं था उसके पास . तुरंत वोह रिक्शे में जा बैठी। रिक्शा चलने लगा। उसने नज़र बचाकर रिक्शेवाले की शकल देखी। लगभग 50-55 की बरस का। आधे काले आधे सफ़ेद बाल। यूनिफार्म इतनी साफ़ सुथरी जैसे सुबह ही इस्त्री की हो. यह वोही था जिसने उसे कल सुबह स्टेशन तक छोढ़ा था। वोह सोच में पड़ गयी। पर उसे यह बात कोई सोचने वाली बात लगी नहीं। उसे लगा किताब पढ़ लेगी तोह शायद समय का बेहतर उपयोग हो जायेगा। तभी एका एक रिक्शेवाले ने बोला।
रिक्शेवाला- मैडम आप साढ़े नौ बजे रोज़ घर से निकलती हैं। आज थोडा देर हो गयी शायद।
वोह- हाँ, इसीलिए सीधे रिक्शे से ऑफिस जा रही हूँ।
यह बोलके उसने अपना मुह फिर किताब में घुसा लिया। रिक्शेवाले की बोलने में कपट तो नहीं था , एक मासूमियत ही थी . पर तब भी वोह इस बात पर यकीन नहीं करना चाह रही थी। वोह उसकी मासूमियत पर यकीं करे भी कैसे , आये दिन अखबारों और न्यूज़ में तरह तरह की बुरी खबरे पढ़ के उसका सतर्क रहना बनता था। क्या पता कब कोई इंसान अन्दर से जानवर निकल जाये। उसकी आँखें किताब पे टिकी थी पर मन इन्ही उलझनों में अटका हुआ था। उसे याद आया की एक बार जो वो अपनी दोस्त के साथ ऑफिस आई थी तो इसी रिक्शेवाले ने छोड़ा था। इसने रास्ते में खूब बातें की थी, दोस्त को उसका बातें करना ज्यादा पसंद न आया। जब रिक्शावाला अपनी बातों में मग्न था तो दोस्त ने चुपके से पैनी आँख से उसे गुस्से में देखा। उसने हस के टाल दिया। यह लोग भी तो दिन भर इधर उधर करते थक जाते होंगे, इनसे बात करने को भी कोई नहीं होता होगा।
वोह इस सोच में डूबी हुई ही थी कि रिक्शा लाल सिग्नल पर जाके रूका और एक भिकारी ने आके उससे भीक मंगनी शुरू कर दी। किताब इस समय पे सबसे अच्छा साथी होती है। बस किताब में अपना सर घुसाए रखो, लोगों को लगेगा की आप पढने में इतने मग्न हो की आपने कुछ सुना ही नहीं। थोड़ी देर बाद उन्हें भी अपना जतन फीका लगेगा और वोह भी चले जायेंगे। रिक्शा आगे बढ़ा। उसने महसूस किया की रिक्शेवाला शोर्ट कट्स से रिक्शा ले जा रहा था जैसे देर उसे नहीं रिक्शेवाले को हो रही हो। 10 मिनट बाद रिक्शा ठीक उसके ऑफिस के सामने रुक गया। यह देखके उसे यकीन हो गया की इसी रिक्शेवाले ने उसे पहले दो तीन बार छोढ़ा है क्यूंकि उसने एक बार भी रास्ते में अपने ऑफिस का पता नहीं बताया।
पैसे देने को जब उसने पर्स निकाला तोह रिक्शेवाले ने बोला-
रिक्शेवाला- मैडम इतना ही होता है न यहाँ का , ज्यादा तोह नहीं हो गया।
मैडम - नहीं ठीक है दादा, इतना ही देती हूँ जब भी रिक्शे से जाती हूँ।थैंक यू।
जैसे ही उसने रिक्शेवाले को रुपये थमाए , उसने पूरा हाथ उठा के सलामी दी। यह देख के उसे अचरज भी हुआ और हसी भी छूट गयी। एक लम्बी सी मुस्कान के साथ उसने ऑफिस में प्रवेश किया। उसकी कूलीग ने उसे छेढ़ते हुए पूछा की वोह इतना मुस्कुरा क्यूँ रही है। उसे लगा की अगर वोह बताएगी रिक्शेवाले की वजह से , तो सब उस पर हस पड़ेंगे। कोई पुरानी बात याद आ गयी, यह बोलके वो अपनी ऑफिस की डेस्क पे बैठ गयी।
अगली सुबह वो समय पे उठी थी। बिल्डिंग से उतरी तो देखा वोही रिक्शेवाला खड़ा है। रिक्शेवाले ने उसे सलामी भरी।
रिक्शेवाला- कहाँ जाएँगी मैडम, स्टेशन या ऑफिस।
वोह- स्टेशन।
पता नहीं क्यूँ , वोह रिक्शेवाले के साथ बहुत विनम्र होके बोल नहीं पायी। रास्ते में रिक्शावाला कुछ कुछ बोले जा रहा था और वोह हाँ ना में जवाब देके इधर उधर देख रही थी। वो उसकी बात को सुन्ना चाह रही थी उससे बातें करना चाह रही थी पर नहीं कर पा रही थी। समाज की बनायीं हुई डोर तो उसके हाथ से नहीं छूट जाती? या उसके अपनापन दिखाने से रिक्शावाला कुछ और तो न समझ बैठता? यह सब सोच के उसने चुप रहना ही बेहतर समझा। रिक्शा स्टेशन पहुचने ही वाला था की वो अचानक पूछ बैठी।
वोह- आप मेरे घर के आस पास रहते हो क्या ?
रिक्शेवाला- नहीं मैडम, क्यूँ?
वोह- सुबह सुबह आपका रिक्शा रोज़ वहीँ दिखता है.
रिक्शावला - मैडम बुरा मत मानना , पर सुबह सुबह आपके हाथ से बोनी होती है, तो पूरा दिन अच्छा बीतता है, पैसे भी ठीक ठाक मिल जाते है।
वोह- आप इतना मत सोचिये, वहम है यह, और प्लीज मेरे आने जाने का समय तय नहीं रहता है, आप ही को नुक्सान होगा, ऐसे रोज़ मत आईये।
रिक्शेवाला कुछ नहीं बोला। रिक्शा स्टेशन पर पहुच चुका था। उसने पैसे लिए, एक सलामी भरी और चला गया।वोह सोचती रही, क्या उसने सही किया या गलत। किसी और को बताएगी तोह वोह येही बोलेगा की सही किया आजकल किसी का भरोसा नहीं। खुद को तस्सली देकर वो ट्रेन में चढ़ गयी।
अगले दिन ऑफिस जाने को वोह बिल्डिंग से बहार निकली तो रिक्शेवाला नहीं था। उसके बाद वोह कभी नहीं आया। वोह न तो यह बात किसी को बता सकी, न ही खुद भूल पायी . बस एक टीस की तरह यह बात और रिक्शेवाले की मासून मुस्कान उसके मन में हमेशा के लिए रह गयी।
After a long time, I read something in Hindi. School ki yaad aa gayi. Nice one!
ReplyDeleteThank you Gaurav... More to come to brush up your hindi :-)
ReplyDeleteAwsome and hearttouching keep writing isha..............
ReplyDeleteThank you Deepak ...More to come :-)
ReplyDeleteWaah Isha..!!! Padh ke mazaa aa gaya :) Good work..Keep it up <3<3
ReplyDeleteNice! Keep writing:)
ReplyDeleteNice story near to reality,its optimistic thought,world is not full of sorrow.
ReplyDeletelovely di :*
ReplyDeletePromila this side
ReplyDelete:)
Thank you all :-)
ReplyDeletei really loved the story :)..keep it up
ReplyDeletepratyul
wow..so beautifully written Ishu :)
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