“मुझे तुमसे कुछ बोलना है. मैंने शुरू में तुम्हे रिजेक्ट कर दिया था, पर मेरे
पास और कोई चॉइस नहीं थी ...... मुझे तुम्हारा पता नहीं, देखो हम इस पे आराम से
बात करते सकते हैं...” अनुज ने थोडा हिचकिचाते हुए यह बात बोल डाली.
दुल्हन के लिबाज़े में बैठी काव्या, अभी तक दुल्हन की तरह कैसे शरमाया जाए,
उसका पूरा अनुकरन कर रही थी. पर अपनी सुहागरात में अपने पति के मुह से यह बात
सुनकर वोह अवाक रह गयी. पहले की तरह आँखें नीचे करके बैठी रहे, उसे क्रूर दृष्टि
से देखे, उसके साथ हाँ में हाँ मिलाये, या इस बात को पी जाये, उसकी समझ में नहीं आ
रहा था कि वोह किस तरह से प्रतिक्रिया करे. एक किताब की तरह उसके दिमाग ने पिछले
साल के पहले पन्ने को खोल दिया.
काव्या अपने दोस्तों के साथ कॉलेज के गार्डन में बैठी थी. उसके बगल में समर भी
था. हसी मज़ाक में ही किसी ने एक मोटे लड़के पर टिप्पणी कर दी.
“मंदीप तेरी शर्ट का बटन जो बहार निकलने को तैयार है, अगर टूट गया ना, तोह
गोली की तरह किसी को चीरता हुआ जायेगा.”
यह सुनते ही सब हस पड़े. हसी काव्या भी, पर उसकी हसी में थोड़ा संकोच था. शायद ऐसा
मज़ाक कभी सबके सामने उसका भी उड़ जाये, इसका बात का उसे डर था. समर ने उसकी
आँखों में उस असहजता को पढ़ लिया.
“चलो, देखते हैं आज शाम को कोई अच्छा प्ले लगा है या नहीं.” समर ने उठते हुए
कहा.
काव्या समझ गयी की समर ने यह अचानक से यह बात कहाँ से उठा दी. उसने अपना बैग
उठाया और समर के साथ कंप्यूटर लैब की तरफ चल पड़ी.
रास्ते में चलते हुए दोनों कुछ नहीं बोले. उनके तीन साल पुराने रिश्ते में अब
यह चुप्पी अजीब नहीं लगती थी. ऐसा महसूस नहीं होता था कि ज़बरदस्ती कोई न कोई बात
कह के इसको भरा जाये. इस मौन में भी एक खुबसूरत सा सुकून था.
“काव्या जैसे जैसे कॉलेज ख़तम होने के दिन पास आ रहे हैं, वैसे वैसे बेचैनी बढ़
रही है. इतनी सारी बातें दिमाग में चल रही हैं, ऐसा लगता है करने को इतना कुछ बचा
है, और समय उतना ही सीमित है” समर ने अपने मन की बात कहकर मौन को तोड़ा.
काव्या उसकी इस बेचैनी से अवगत थी. समर को एक अच्छी नौकरी चाहिए थी ताकि
काव्या के पापा से वोह रिश्ते की बात कर सके. पर बात नौकरी की नहीं थी, बात जिस
मुद्दे की थी, वोह समर को बताने में असमर्थ थी. देसी घराने से ताल्लुक रखने वाले
उसके पापा को अपनी बेटी का हाथ एक पहाड़ी लड़के के हाथ में देना रास नहीं आएगा. उनकी
इस संकीर्ण मानसिकता को बदलना न तोह उसके और ना ही समर के बस में था. काव्या ने तय
की पहले वोह खुद पापा से बात करके देखेगी.
“काव्या मैंने तुमसे कुछ कहा है. कुछ जवाब तोह दो?” विचारों के समंदर में डूबी
हुई काव्या समर की यह बात सुनके क्षण भर में वर्तमान में वापिस आ पंहुची.
“तुम क्यूँ नौकरी की चिंता कर रहे हो समर. कुछ दिन में कम्पनीज़ आना शुरू हो
जाएँगी. आई ऍम शुअर कॉलेज एंड होने तक तुम प्लेस्ड हो चुके होगे.” यह बोलके उसने
समर को तो तसल्ली दे दी, पर खुद को नहीं दे पायी.
समर उत्तराँचल के एक छोटे शहर से आया एक लड़का था. दिल पानी की तरह एकदम साफ़. खुद
दिखने में काफी अच्छा था पर रूप का गुरूर उसे कभी नहीं हुआ. काव्या और समर कुछ ही
दिनों में अच्छे दोस्त बन गए थे. और दोनों इस बात से पूरी तरह से वाकिफ थे की यह दोस्ती
उन्हें किस तरफ ले जा रही थी. काव्या बहुत ख़ूबसूरत तोह नहीं पर आकर्षक थी. समर के
प्यार में इन सतही परतों से कोई कमी नहीं आई. वोह तोह काव्या के स्वभाव और
आत्मविश्वास पर फ़िदा था.
आज काव्या अपने पापा के सामने समर की बात रखने वाली थी. सुबह से ही वोह सही
समय के इंतज़ार में थी. आज इतवार था इसलिए पापा को ऑफिस जाने की चिंता भी नहीं थी.
एक हाथ में चाय की प्याली और दूसरे में अखबार लिए वे आराम से ड्राइंग रूम के सोफे
एक एक कोने में विराजमान थे. काव्या को पापा का मूड देखके लगा की यह सही समय है
उनसे बात करने की. वोह धीरे से आई और सोफे के दूसरे कोने में जाके बैठ गयी.
“पापा एक बात करनी थी आपसे.” बहुत साहस जुटाकर उसने बोला.
“ह्म्म्म.... कितने पैसे चाहिए बेटा.” पापा ने आरामतलब होकर कहा.
“नहीं पैसे नहीं चाहिए.” पापा की बात सुनकर वोह अपनी हसी रोक नहीं पायी.
“पैसे नहीं चाहिए, तोह और क्या बात करनी है मेरी चिड़िया को मुझसे.” अखबार मोड़
के पापा ने मेज़ पर रख दिया जैसे उन्हें एहसास हो गया हो की काव्या उनसे कुछ
महत्वपूर्ण बात करना चाहती है.
“पापा आपको नहीं लगता अब मेरी शादी की उम्र हो गयी है? आपको मेरे लिए रिश्ता
देखना चाहिए?” मज़ाक में काव्या ने यह बात बोल डाली फिर खुद की ही कही हुई बात उसे
अजीब लगने लगी.
“हे भगवान्, क्या ज़माना आ गया है. पहले लड़कियां शादी के नाम पे शर्माती फिरती
थी और यहाँ देखो, मुह खोल के पूरी खोल के पूरी डिमांड है..” यह बोल के पापा हसने
लगे.
“वैसे मैं भी तुमसे यह बात करने वाला था. पर तुम्हारी नौकरी लगने का इंतज़ार कर
रहा था. तुम्हे आत्म निर्भर बनना है ना. पर अच्छा हुआ तुमने यह विषय खुद ही उठा
लिया. मेरे ऑफिस के कुलीग है न मिस्टर शर्मा, उनका बेटा भी तुम्हारी तरह सॉफ्टवेर
इंजिनियर है. कल उनसे मेरी बात ......”
“पापा अगर मैं ही आपका यह काम हल्का कर दूँ तोह?” काव्या ने पापा की बात काटते
हुए कहा, अन्दर से सहमी हुई काव्या बाहर से निस्संकोच यह बात कह गयी.
यह बात सुनकर आधे मिनट तक पापा काव्या को देखते रहे जैसे उन्हें यकीन नहीं आ
रहा हो की सचमुच काव्या ने यह बात उनसे बोली हो.
“मज़ाक कर रही हो ना.” पापा अब भी काव्या को घूर रहे थे और काव्या उनसे नज़र बचा रही थी.
“पापा एक लड़का है, एक बार मैं आपको उनसे मिलाना चाहती हूँ.”
“हमारी बिरादरी का है?” पापा की आवाज़ में अब एक कठोरता थी.
“नहीं, देसी नहीं, पहाड़ का है, पर वोह बहुत अच्छा लड़का है पापा, वोह मुझसे....”
पहला वाक्य सुनने के बाद, पापा उसकी बात अनसुनी करके उठकर कमरे से बाहर चले
गए.
काव्या पापा की इस प्रतिक्रिया को समझ नहीं पायी. ना तोह उन्होंने गुस्सा
दिखाया और ना ही हामी भरी. बस उठ के चले गए. उसकी बात पूरी तक नहीं होने दी. काव्या
असमंजस में पड़ गयी, यह कहाँ की आधुनिकता है. वे चाहते हैं मैं पढूं लिखूं, अच्छी
नौकरी करूँ, आत्म निर्भर बनूँ. पर शादी की बात हो तोह अपनी पसंद के लड़के से शादी की
बात इतना बड़ा पाप बन गयी?
अनुज के एक हाथ में चिप्स का पैकेट था और दूसरा हाथ उसका लैपटॉप के कीबोर्ड पर
चल रहा था. दोस्त बगल में बैठा था और दोनों की कोशिश ज़ारी थी अनुज के लिए भावी पत्नी
देखने की. सुबह से दोनों मैट्रिमोनियल साईट पे बैठे थे और अलग अलग लड़कियों की
प्रोफाइल देखके मज़ाक उड़ाने में उनका अच्छा टाइमपास हो रहा था. तभी काव्या की
प्रोफाइल उनके सामने आती है. काव्या की बात सुनते ही काव्या के पापा ने जोर शोर से
उसके लिए लड़का ढूँढना शुरू कर दिया था तथा किसी भी मैट्रिमोनियल साईट को नहीं छोढा
था.
“अबे इसको देख, क्या मस्त बाइसेप्स हैं. इतने तोह मेरे भी नहीं होंगे बॉस.”
अनुज के यह कहते ही उसका दोस्त जोर से हसने लगा. इतने में पैकेट से थोड़े से चिप्स
गिर जाते हैं. “शिट मैन” बोलके वोह फिर काव्या की फोटो को देखने लगता है.
“आगे बढ़ ना, पसंद आ गयी क्या तुझे?” दोस्त उसे टोकते हुए बोलता है.
“ये? अबे बीवी चाहिए, पहलवान नहीं...पर शायद मैं इसके घरवालों को जानता हूँ.”
अनुज थोडा सोचता है , फिर किसी और की प्रोफाइल देख के बोलता है “चल छोड़, अबे ये
वाली देख, क्या मस्त है. सही है ना, तेरी भाभी बन्ने के लायक, इससे बात चलता हूँ”..
यह बोल के दोनों फिर अपने टाइम पास में व्यस्त हो जाते हैं.
अनुज अपनी पसंद की हुई लड़की से रिजेक्ट होके इस बार पापा के कहे हुए रिश्ते को
देखने उनके साथ चला गया. लड़की जब अपने कमरे से बाहर आई तोह उसे गौर से देखने लगा
जैसे पहले कहीं देखा हो. यह वोही थी जिसकी प्रोफाइल देख के उसने अपने दोस्त के साथ
मिलके मज़ाक उड़ाया था, यह काव्या थी.
ना अनुज काव्या को देख के मुस्कुराया, ना काव्या अनुज को देख के. दोनों के बस
में कुछ नहीं था. दोनों के घरवालों ने हामी भर दी. अनुज के पापा ने जितने दहेज़ की
बात रखी, सुनते ही काव्या के पापा ने हाँ कर दी. आनन् फानन में दोनों का रिश्ता तय
हो गया.
शादी की पहली रात को अनुज के मुह से यह बात सुनके काव्या कुछ नहीं बोल
पायी...
वोह चुपचाप उठ के बाथरूम चली गयी. काव्या ने शादी के कपड़ों और गहनों का बोझ तोह
उतार दिया था पर इस बात का बोझ उससे सहा नहीं जा रहा था.
कपडे बदल के वोह बिस्तर पर लेट गयी. अनुज भी बगल में लेटते ही अगले पांच मिनट
में सो गया.
एक समर था जिसने काव्या के अंदरूनी व्यक्तित्व से प्यार किया था और एक अनुज था
जो अपनी सतही सोच के परे ना तोह सोच पाया और ही सोचने की चाह रखी. पर येही अब उसका
‘पति’ था, उसके जीवन भर का हमसफ़र. पापा के इस बिरादरी के मान सम्मान के चक्कर में
काव्या के मान सम्मान को दर दर पर कितनी चोटें मिलने वाली थी उसका उन्हें अंदाजा
भी न था.