कब से चालू
करने की कोशिश
में हूँ
पर हो ही
नहीं रहा
इतने सालों में इसपे
ज़्यादा ज़ोर जो
नहीं डाला
पुर्जों को शायद
जंग लग गया
होगा
स्थिर पड़ा है,
टस से मस
नहीं हो रहा
अनछुई, अनकही दास्ताँ के
समां
न चाय की
ना कॉफ़ी की,
कोई भी किक
काम नहीं आयी
दिमाग भी एक
गाड़ी के समां
है
जितना चलाओगे उतना लम्बा
सफ़र तय करेगा
वर्ना फिर निल
बटे सन्नाटा